सिद्धांत शिरोमणि वाक्य
उच्चारण: [ sidedhaanet shiromeni ]
उदाहरण वाक्य
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- इनका वर्णन सिद्धांत शिरोमणि में भी है.
- इनका वर्णन सिद्धांत शिरोमणि में भी है.
- सिद्धांत शिरोमणि संपूर्णानंद सं. वि.वि. मुरलीधर चतुर्वेदी 200/-
- इसका वर्णन सिद्धांत शिरोमणि में इस प्रकार आया है-
- इसका वर्णन सिद्धांत शिरोमणि में इस प्रकार आया है-तुंगबीजस
- इनके सिद्धांत शिरोमणि से ही भारतीय ज्योतिष शास्त्र का सम्यक् तत्व जाना जा सकता है।
- उन्होंने चुनाव अधिकारियों के लिए ओमप्रकाश कौशिक व सिद्धांत शिरोमणि सीरौठिया को नामित किया है।
- इनके सिद्धांत शिरोमणि से ही भारतीय ज्योतिष शास्त्र का सम्यक् तत्व जाना जा सकता है।
- सिद्धांत शिरोमणि की अंग्रेजी टीका के वे पृष्ठ जिनमें पृथ्वी के व्यास और परिधि की चर्चा है।
- वराह मिहिर वृहद संहिता, वृहत्जातक, लघुजातक 3. भास्कराचार्य सिद्धांत शिरोमणि 4. श्रीधर जातक तिलक
- इनमें से प्रथम दो स्वतंत्र ग्रथ है और अंतिम दो “ सिद्धांत शिरोमणि ” के नाम से प्रसिद्ध हैं।
- भास्कराचार्य ने सिद्धांत शिरोमणि में कहा है कि वेदों में यज्ञों का वर्णन है और यज्ञ काल के आश्रित होते हैं.
- उन्होंने लीलावती और बीजगणित जैसी गणित की पुस्तकों की रचना की तथा ' ' सिद्धांत शिरोमणि '' नामक ज्योतिषशास्त्रा की पुस्तक लिखी।
- सिद्धांत शिरोमणि के अनुसार जो रेखा लंका, उज्जयिनी, कुरुक्षेत्र आदि को स्पर्श करती हुई सुमेरु पर्वत तक गई है, उसे विद्वानों ने भू-मध्य रेखा कहा है।
- भास्कराचार्य की ही पुस्तक ‘ सिद्धांत शिरोमणि ‘ के चौथे खण्ड ग्रह-गणित में किसी ग्रह की तात्क्षणिक गति निकालने के लिए अवकलन (डिफरेन्शिएशन) का प्रयोग किया गया है।
- न्यूटन से करीब 500 साल पहले इन्होंने अपने ग्रंथ सिद्धांत शिरोमणि में साफ बताया कि पृथ्वी में ही नहीं, गुरुवाकर्षण शक्ति सभी भारी वस्तुओं में होती है …. ।
- सिद्धांत शिरोमणि के भौगोलिक ज्यामितीय अध्याय में यह स्पष्ट किया गया है कि जन्माङ्ग गोल के उभयाश्रित जीवा या वृत्त खण्ड को 210 से 240 अंशो तक निर्धारित किया गया है.
- भास्कराचार्य सिद्धांत शिरोमणि 4. श्रीधर जातक तिलक ज्योतिष शास्त्र के कुछ और जाने-माने ग्रंथ इस प्रकार हैं-1. सूर्य सिद्धांत 2. लघु पाराशरी 3. फल दीपिका 4. जातक पारिजात 5. मान सागरी 6.
- अपने गणित ज्योतिष ग्रंथ ‘ सिद्धांत शिरोमणि ' में उन्हों बताया कि पृथ्वी की परिधि 4697 योजन और व्यास 1581 योजन है यानि उनका योजन भी ब्रह्मगुप्त के योजन के लगभग बराबर ही था।
- भास्कराचार्य ने भी अपने प्रसिद्ध ग्रंथ ' सिद्धांत शिरोमणि ' में लिखा है चैत्र मास के शुक्ल पक्ष के प्रारम्भ में रविवार के दिन से दिन, मास, युग एक साथ आरंभ हुए हैं।
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